नौकरी और घर तो, बड़े लोगों की नालायक औलादें, अपने बापों की प्राइवेट लिमिटेड बना चुके? कौन-सा और कैसा लोकतंत्र है ये?
ऑनलाइन संसार उनके कब्जों में वैसे ही है। पता नहीं कितनी फौजें बिठा रखी हैं, ऐसे-ऐसे लोगों ने और कहाँ-कहाँ। आप Lord, Ladies (या जो भी suitable सम्बोधन बेहतर लगे) के वश में, क्या किसी की बची-खुची बचत तक दिलवाना नहीं है? ये कौन संगीता है? या जो कोई है, जो उस बचत पे भी आदमखोर की तरह कुंडली मारे बैठी है या बैठा है? क्या सारे घर को खाके, उस बचे-खुचे रुन्गे को भी आपस में बाँटोगे? एक सस्पेन्ड एम्प्लोयी तक को महीने का गुजारा-भत्ता जैसा कुछ मिलता है। फिर यहाँ तो ससपेंड नहीं, बल्की खुद रिजाइन किया हुआ है। अब वो कैसे गुंडागर्दी से करवाया हुआ है, वो अलग बात है। मगर यहाँ तो पिछले तीन साल से धेला नहीं मिला। ऐसे हालातों में कोई अपना गुजारा कैसे करता होगा? आसपास को कुत्ता बनाने का इससे बेहतर तरीका भी, शायद कोई नहीं हो सकता? सबकुछ अपने कब्ज़े में कर लो और लोगों को कटोरे थमा दो। यही अमृतकाल है?
बोतल थमा दो, ज़मीन ले लो, उसी का हिस्सा है।
नंगा करवा, नोटों की बारिश और वीडियो उसी का परिणाम है? सबसे बड़ी बात नोट किसके?
कुछ बच गया हो तो, चाकू, डंडा, हॉकी या शायद कट्टा या पिस्तौल या ऐसा कोई खिलौना भी थमा दो? बहुत बड़ी बात है क्या? बड़ी बात ये है, की ये सब अभी क्यों हो रहा है? उससे पहले क्यों संभव नहीं हुआ? थोड़ा दिमाग, टेक्नोलॉजी और थोड़े संसाधन हों, तो क्या कुछ संभव नहीं है? आज के मानव रोबोट उसी का हिस्सा हैं। मुझसे बेहतर, ये भी जानकार लोग ज्यादा जानते हैं।
किसी ने कहा तुमने वो वाली फोटो ऑनलाइन क्यों नहीं रखी?
9 और 10 की रात को सुबह 2 बजे के आसपास, कोई भुक्खड़ कुछ भौंक रहा था? और हाथ में खिलौने जैसा कुछ था? किसका था वो? कहाँ से लाया था? या किसने थमाया था? काला पड़ चुका, गला-सड़ा skelton, क्या बक रहा था? कौन हैं वो, जो उस प्लाट में चौकड़ी जमाए पड़े रहते हैं, मना करने के बावजूद? और माँ, बहन या बेटियों को वहाँ से निकालने या निकलवाने में?
जब सबकुछ बड़े लोगों की जानकारी में घड़ा और किया जा रहा हो, तो मेरे पोस्ट करने या ना करने से कितना फर्क पड़ जाएगा? शायद मुझे गाँव धकेला ही इसलिए गया था की आपस में ही मरकट जाएँ, ऐसा जाल बिछाओ। कितनी ही तो कोशिशें हो चुकी। दुनियाँ जहाँ में लिखा जा रहा है। क्या हुआ, यहाँ के गंवारों को समझ नहीं आ रहा तो? तुम्हें, तुम्हारे ही खिलाफ गोटियों की तरह चला जा रहा है। ये बोतलें, ये चाकू, ये डंडे, हॉकी या पिस्तौल या खिलौने, किसी के पैसे और किसी नंग-धडंग, पियक्कड़ का विडियो? सब अपने आप और बिन वजह नहीं हो रहा। वो तुमसे रोटी, कपड़ा, ज़मीन-जायदाद छीनकर, किताबें या पढ़ाई-लिखाई छुटवाकर क्या थमा रहे हैं? सबसे बड़ी बात, उनके वीडियो भी बना रहे हैं या बनवा रहे हैं? क्यों? क्या दिखाने के लिए?
अगर ये बचत वक़्त पर मिल गयी होती, तो इनमें से ऐसा कुछ नहीं होना था। पैसे और संसाधनों के कब्जे का सारा खेल यही है। अभी भी उस बचत पर कब्जे का मतलब यही है। जो कुछ बचा है, उसे भी साफ़ करना है। आदमखोर हैं, और सबको खाना है?